पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२५५

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हिंदुस्थानी का भँवजाल २४५ हैं कि उसके मानी अब होने लगे हैं; नागरी लिपि में लिखी जानेवाली संस्कृत शैली की जबान । (हरिजन सेवक, वही, पृष्ठ १) सच है, घसीटू लोग यही करते जो हैं। कौन नहीं जानता कि 'हिंदुस्तानी' के उपासक उसके जीवन के लिये क्या नहीं करते हैं। घसीटना तो एक सामान्य बात है। दम्भ में आकर यहाँ तक कह जाते हैं कि 'ओछे खयाल के लोग' पाकिस्तान बन जाने के कारण हिंदुस्तान' को हिंदुस्थान कर रहे हैं और इसे केवल हिंदू का स्थान बताते हैं। कहीं अलग जाने की बात नहीं। यहीं इतना और भी देख लीजिए । लिखते हैं- अभी अभी पाकिस्तान के निर्माण से हिंदुस्तान' शब्द कुछ अप्रिय हो गया है इसलिए श्रोछे खयाल के लोग 'हिंदुस्तान के 'हिंदुस्थान' शब्द का प्रयोग जानबूझ कर करते हैं, और इस तरह हमारे देश को सिर्फ हिंदुओं का ही देश मनवाने की कोशिश करते हैं। (वही) 'ओछे खयाल के लोग' को मुँह लगाना ठीक नहीं पर इतना तो मानना ही होगा कि यह कोशिश हो रही है 'मुसलमान' से मनवाने के लिये ही । अथवा किसी अहिंदू से कह लीजिए । किंतु तो भी कहिए तो सही इस हिंदुस्तानी का अर्थ होता क्या है। सुनिए किसी अल्लामा किंवा पूज्य राष्ट्रपिता के शब्दों में 'मुसलिम डिवाइन' का कहता है- मुसलमान जब इस मुल्क में श्रार तो उनमें से प्रहल अरब ने इस मुल्क को 'हिंद' कहा, और अद्दल खुरासान ने 'हिंदुस्तान का नाम दिया। लफ्ज़ 'तान' जगह या ज़मीन के लिये फारसी और संस्कृत