पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२४९

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हिंदुस्थानी का मवजाल २३६ शुद्ध हिन्दी शब्द व्यवहार करते थे, देहात में कहीं-कहीं अब तक करते हैं। ( हिन्दी साहित्य-सम्मेलन-कराँची, राष्ट्रभाषा परिषद के सभापति का अनिभाषण, पृष्ट २३-४)। श्री सुनीतिकुमार चाटुा जैसे भाषामनीषी की साखी आपके सामने है। किंतु 'उर्दू की उपासना के कारण यह बात आपकी समझ में नहीं आ सकती, अतएव आप को बताया जाता है कि एक दिन- अकवर सानी द्वितीय के हुजूर में परचः गुजरा कि आज शाहजहाँ श्राबाद में शहर वालों ने खटवुनवों को खूब मारा पीटा। क्योंकि खटबुनवों का काअदः है कि जब वह शहर में फेरी फिरने श्राते हैं तो आवाज लगाते हैं. खाट बुला लो खाट, खाट बुना लो खाट । शहरवालों ने कहा--निकले तुम्हारी खाट। यह क्या बुरी फाल' मुँह से निकालते हो । फिर जो उन्हें पीटा है तो पीटते पीटते झिलँगा बना दिया और इस टकसाल बाहर लफ्ज से तोत्रा करवाई और समझाया कि बजाय 'खाट बुना लो' के 'चारपाई बुना लो' कहा करो। चुनांचे जब से अब तक खटबुने' 'चारपाई बुना लो' ही कहते हैं। इस तकल्लुफर व तंबीह और तदबीर से 'उर्दू-ए-मुअल्ला को सँवारा गया है । और जगह उर्दू को चार चाँद नहीं लग सकते । इन 'खरबुनवों' की एक सिफत५ काबिले रश्क वह है कि शाहजहाँ के अहद से आज तक उनका किसी फिल्म का भोकदमः किसी अदालत शाही में नहीं पाया । उनका सरगिरोह जो चौधरी कहलाता है, वही चुका देता है। (लालकिलाब की एक झलक, इंपीरियल ट्रेंनिग प्रेस, देहली-पृष्ठ ४६७)। ३-चेतावनी। ४-तदबीर । १-शकुन । २–बनावट । ५-गुण।६-ईर्ष्या के योग्य ।