पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२४६

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२३६ राष्ट्रभाषा पर विचार में लिखी गई, पर सरकार के सामने सब झूठ, सच वही जिसको वह सराहे। परंतु परमात्मा की कृपा और देश के उद्योग से पलड़ा पलट गया। आज युक्तप्रांत की भाषा 'हिंदी' घोषित हो चुकी और उसकी 'हिंदुस्तानी एकाडमी' भी 'हिंदी' बन चली। साथ ही समस्त उत्तर भारत 'हिंदी' का हो गया। हिंदीभाषी कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जहाँ 'हिंदुस्तानी' का अनुष्ठान आज भी चालू हो । किंतु, हम फिर भी देखते क्या हैं ? यही न कि हमारे 'राजा' और 'जवाहिर' हिंदुस्तान के लिये मर मिटने की ठान रहे हैं और विश्ववन्ध महात्मा गांधी एवं पूज्य राष्ट्रपिता, 'बापू के प्रिय 'हरिजनसेवक' में छप रहा है हिंदुस्तानी' का पुराण उसके एक त्यागी, तपस्वी, कर्मवीर का कहना है- 'हिन्दुस्तानी न तो प्रान्तभेद को जानती न उसके लिये हिन्दीसंब की सीमा का बन्धन । वह उससे बाहर पाकिस्तान में भी फैली हुई है । उसकी दोनों लिपियों-नागरी और उर्दू - के जरिये हमें उसकी उपासना करनी है। उर्दू की उपासना हमें अपने पड़ोसी अफगा- निस्तान, बलूचिस्तान, ईरान, अरबस्तान बगैरा के नजदीक ले जायगी। (८ अगस्त, १६४८) पते की बात मुँह से निकल आई, सचमुच उर्दू की उपासना हमें अपने पड़ोसी के नजदीक ले जायगी' और हमारे देश के एक खंड-पश्चिमी पाकिस्तान को उधर ले भी गई; परन्तु पूर्वी पाकिस्तान का क्या होगा ? उसका भी कहीं पड़ोस है ? कुछ उत्तर और पूर्व के पड़ोस पर भी तो ध्यान दीजिए। कहाँ तक आपका प्रसार है और विश्व के कितने लोगों पर ?