पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२४५

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हिंदुस्थानी का मँवजाल २३५ इस पर न्यायपूर्वक विचार न हुआ और न इस समय होने की आशा है, कारण प्रत्यक्ष है आज 'प्रियर्सन' और 'अँगरेज का सामना नहीं, आज तो राष्ट्रपिता' और राष्ट्र के प्रधान' का प्रश्न है, किंतु यदि अपराध आमा हो तो स्पष्ट कहा जा सकता है कि यह भ्रम की बात है। सत्य की दृष्टि और विवेक की आँख से देखा जाय तो नाड़ा प्रियर्सन' और 'मालवीय' का ही है कुछ महात्मा और 'महामना' का नहीं । 'महात्मा 'ग्रियर्सन' की कहते हैं और नहानना' अपनी । बस: भेद इसी का है। बात कुछ कड़ी है पर है सर्वथा यथार्थ ही। टुक धीरज धरें तो आप ही स्पष्ट हो जाय। हाँ, तो विदेशी विद्वानी' और 'ऊँचे पद पर प्रतिष्ठित अँग- रेजों का दुराग्रह धीरे-धीरे इतना बढ़ा कि सन् १९४१ की जन- गणना में हम अपनी जन्मभावा के अधिकारी न रहे, और गणकों को स्पष्ट आदेश मिला कि कोई कुछ भी वकता रहे किंतु तुम उसकी भादरो जवान' का नाम हिंदुस्तानी' ही भरो । देखिए न, कितना सञ्चा विधान है- "१८-श्राप की मादरी जवान क्या है ?' हिदायत-(मादरी जवान ) यह दर्ज कीजिए कि उस शख्स को मादरी जवान क्या है। यानी उस शख्स ने कौन सी जवान सत्र से पहले बोली, दूध पीते बच्चों और गूंगे, बहरे लोगों की जवान वही दर्ज की जायगी जो उनके माँ की है। सूबे की प्राम लोगों की जबान को 'हिंदुस्तानी दर्ज कीजिए । उर्दू या हिंदी न दर्ज कीजिए । पहाड़ी योली के लिये भी हिंदुस्तानी' दर्ज होगी। कितनी बढ़िया सीख है। नपस्वी पहाड़ी भी हिंदुस्तानी के प्रकोप से न घचे ? उनकी बोली हिंदी रही और सदा नागरी