पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राष्ट्रभाषा पर विचार २३२ भक्ति का भाव उमड़ा तो जूनागढ़ के 'दीवान' को “श्री हाटकेश्वराय नमः" और "श्री रघुनाथ जी नमः" की सूझी, परंतु वहाँ के नवाब को यह न रुचा । फलतः. वहाँ के सिक्कों पर कुछ ऐसी छाप न लगी, पर इससे इतना तो हुआ कि वहाँ के सिक्के पर नागरी में श्रीदीवान आ गया और उसपर दर्शन हो गया- "श्री सोरठ सरकार' का, 'सोरठ' का, 'सोरठ' किस 'सौराष्ट्र का द्योतक है, इसे भी न भूलें और देखें यह कि यहाँ का नबाबी देशी राज्य अपने अतीत का अभिमानी है वा नहीं ? जूनागढ़ की भाँति ही 'जावरा' मी मुसलमानी राज्य है। किंतु यहाँ भी हम देखते हैं कि नागरी का अभाव नहीं। यहाँ के पैसे पर आप को लिखा मिलेगा नागरी में “सरकार जावरा ।" इस प्रकार इतना स्पष्ट हो गया कि इसलाम का नागरी से कोई विरोध नहीं और मुगलों के अतिरिक्त कहीं उसका ऐसा बहिष्कार नहीं, हैदराबाद की भुगली नीति के जानकार उसकी नागरी उपेक्षा को भलीभाँति समझ सकते हैं। यहाँ, उसका कोई प्रसंग नहीं। हाँ कुछ मनचले इंदौर का भी पता हो जाना चाहिये ! कारण कि वह सदा से कुछ निराला करतब दिखाता रहा है। सो यहाँ आपको देववाणी का साक्षात्कार होगा। देखिये न यहाँ के रुपये पर क्या छपा है ? यही न "श्री इन्द्रप्रस्थस्थितो राजा चक्रवर्ती मंडले तत्प्रसादास्कृता मुद्रा लौके स्मिन्वै विराजते।" स्मरण रहे यह शक संवत् १७२८ (ई. सन् १८०६) की बात है। यशवंत राय होल्कर अभी दिल्लीश्वर के प्रसाद से ही सिक्का ढाल रहे हैं और संस्कृत का उपयोग कर उसके प्रसाद