पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२३९

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२२६ देशी सिक्कों पर नागरी शासन के पहले के सिक्कों पर नागरी को जो स्थान मिला उसकी चर्चा व्यर्थ सी जान पड़ती है अतएव संक्षेप में बताया यह जाता है कि मुसलमानी पंजे से मुक्त होने और कुछ-कुछ स्वतंत्रता की साँस लेने पर मैसूर के श्रीकृष्ण राज (सन् १७६६-१८६८) ने अपने सिक्के पर नागरी को स्थान दिया और अपना नाम इसी में अंकित कराया, ऐसा क्यों किया, इसका एकमात्र कारण यही प्रतीत होता है कि उनकी दृष्टि में नागरी' का यह अधिकार था और वही उनके विचार में उनकी सार्वभौम लिपि थी, उनके पूर्व पुरुषों के द्वारा नागरी का कितना हित हुआ था, इसे कौन कहे, परंतु इस अवसर पर उन्होंने जो कुछ किया यह भी कुछ कमी नहीं। मैसूर के अतिरिक्त बड़ौदा का भी देशी राज्यों में प्रमुख स्थान है। उसके शासकों ने जब तब हिंदी के लिये जो कुछ किया है उसका लेखा लेने का यह अवसर नहीं, यहाँ तो इतना कह देना ही पर्याप्त है कि उसके सिक्के भी नागरी से भरे हैं । तृतीय सयाजी राव के सिक्के पर जहाँ आपको मध्य में 'सरकार' और ऊपर तथा नीचे घुमात्र में लिखा मिलेगा श्री सयाजीराव म. गायकवाड़, सेनाखास खेल शमशेर बहादुर' वहीं दूसरी ओर दिखाई देगा 'संवत दोनयैसे १६५० भी। सारांश यह कि वहाँ आप को मुगली शान भी दिखाई देगी और नागरी रूप भी, यहाँ फारसी का विरोध नहीं किंतु नगरी का सत्कार अवश्य है । बड़ौदा की भाँति ही गवालियर भी देशी राज्यों में महत्व का संस्थान है। उसका क्षेत्र हिंदी के भीतर तक फैला हुआ है। और राजधानी तो हिंदी क्षेत्र में है ही। अतः नागरी को अपना लेना कोई महत्व की बात नहीं कहीं ना सकती, परंतु जब हम