पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२३८

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१८--देशी सिक्कों पर नागरी देश में अब राजभाषा और राजलिपि का प्रश्न छिड़ गया है तब यह भी देख लेना अनिवार्य हो गया है कि देशी नरेशों ने नागरी के प्रति अपने सिक्कों पर क्या व्यवहार किया है। सो प्रथम ही यह कह देना उचित प्रतीत होता है कि वास्तव में यह इस अत्तका विषय नहीं और न इस समय इतना अवकाश ही है कि इसका पूरा-पूरा अध्ययन कर इसकी मीमांसा में लगे। परंतु जब दिखाई यह देता है कि किसी जानकार का ध्यान ही इधर नहीं जाता तत्र थोड़ा अपनी ओर से ही इस विषय में लिख देना कोई पाप नहीं। निदान बताया जाता है कि देशी नरेशों ने जब तब अपने सिक्कों पर जो नागरी को स्थान दिया है वह कुछ कम महत्त्व का नहीं। क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या गौड़ क्या द्रविड़ सभी राज्यों में नागरी को कुछ न कुछ, कहीं न कहीं स्थान अवश्य मिला है, हमारे पास पूरी सामग्री नहीं फिर भी जो प्रस्तुत है उसके आधार पर यह बताया जाता है कि मैसूर के कन्नड़ राज्य से लेकर जावरा के मुसलमानी राज्य तक नागरी का व्यवहार पाया जाता है। सर्वप्रथम मैसूर राज्य को ही ले लीजिए, क्योंकि यही हमारा प्रमुख देशी राज्य है। कश्मीर का विस्तार अधिक है, पर धनजन उतना नहीं जितना मैसूर का । रहा हैदराबाद का उसमानी राज्य, सो उसको देशी राज्य मानना ही भूल है। उसके शासक कभी अपने आपको हिंदुस्तानी नहीं कह सकते । निदान कहना पड़ता है कि मैसूर के देशी राज्य में नागरी को स्थान मिला है। हैदरअली और टीपू सुलतान के कट्टर