पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२३७

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व्यवहार में हिंदी २२७ संकल्प कर लें कि नारी के अतिरिक्त किसी और को अपने प्रतिदिन के व्यवहार और काम-काज में कभी भी स्थान न देंगे और यदि कोई विघ्न डालेगा तो उसे भी देख लेंगे। विश्वास रखिए जहाँ आपने ऐसा अनुष्ठान किया वहाँ देश से हिंदुस्तानी का ब्रह्मराक्षस दूर हुआ और आप राष्ट्र को स्वतंत्र भावभूमि पर आ जमे। फिर न तो हिंदी-उर्दू का द्वन्द्व रहा और न रहा हिंदु- स्तानी का कहीं कोई प्रोझा हो । हाँ, सभी को अपनी वाणी मेल गई और साथ ही मिल गया अपनों में अपना स्थान भी। हम निपट गँवार राजनीति को क्या जाने ? पर हमारी परंपरा- त भाषा का व्यवहार यही है, यही है, यही है। और यही है हमारा राष्ट्रहृद्य अथवा सच्चा स्वराज्य भी राष्ट्र और राज्य भी।