पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२३६

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२२६ राष्ट्रभाषा पर विचार कि वस्तुतः हम उसे किस रूप में देखना चाहते हैं और सचमुच किसे सर्वसुबोध समझते हैं । लीजिए एक नोटिस है- लिहाजा बजारियः इस तहरीर के तुम रामपदारथ मजकूर को इत्तला दी जाती है कि अगर तुम ज़र मजकूर यानी मुबलिग १५:-) जो अज़रूर डिगरी वाजिबुल अदा है इस अदालत में अंदर पंद्रह रोज़ तारीख मौसूल इचलानामा हाज़ा से अदा करो वरनः वजह जाहिर करो कि तुम मुंदर्जा जैल खेतों से जिनके बाबत बकाया डिगरीशुदा वाजिबुल अदा है, बेदखल क्यों न किये जायो। यह तो हुई हमारी उदार सरकार की ठेठ हिंदुस्तानी जिसे उसके पाले-पोसे जीव ही समझते हैं पर हम इसे इस रूप में सहज में समझ सकते हैं- सो इस लेख से तुभको जताया जाता है कि तुम ऊपर कहा हुआ 'रुपया जिसकी तुम्हारे ऊपर डिगरी हो चुकी है इस नोटिस के पाने से पंद्रह दिन के भीतर इस अदालत में चुकता करो, नहीं तो कारण बतलाओ कि तुम नीचे लिखे खेतों से जिनके ऊपर डिगरी का रुपया चाहिए, क्यों न वेदखल किये जानो। (आचार्य रामचन्द्रजी शुक्ल के 'हिंदी एण्ड मुसलमांस' शीर्षक लेख से, लीडर १६ अप्रैल, सन १६१७ ई.) कहने का निचोड़ यह कि जब तक हिंदी-जनता हिंदी और नागरी के व्यवहार के लिए तुल नहीं जाती और वकीलों, मुहरिरों और अहलकारों को विवश नहीं कर देती तब तक देश में किसी देशभाषा का बोलबाला नहीं हो सकता। यदि सचमुच आर्यावर्त को अपनी भाषा और अपनी लिपि की लाज रखनी और अपने जन्मसिद्ध अधिकार को प्राप्त करना है तो आज से ही आप दृढ़