पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२३४

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२२४ राष्ट्रभाषा पर विचार 5«That this Council recommends to the Gop- ernment that certified copies of all vernacular records and documents may be supplied to the applicants according to their desire either in Devanagri or Urdu script." (February 16, 1933). फारसी भाषा की जगह जैसे उर्दू भाषा चालू हो गई, वैसे ही फारसी-लिपि की जगह उर्दू-लिपि का नाम चल निकला, फिर भी उर्दू के हिमायतियों को संतोष न मिला ! कारण यह था कि उन्हें नागरी से बड़ा भय था। भय ने उस समय निश्चय का रूप धारण कर लिया जब कांग्रेस प्रभुत्व में आई और जनता सचेत हो अपनी भाषा और अपनी लिपि की ओर लपक पड़ी। अब चारों ओर से यह आग्रह होने लगा कि वस्तुतः युक्तप्रांत की देशभाषा उर्दू और देशलिपि भी उर्दू ही है। सरकार की आज्ञाओं और विज्ञप्तियों में जहाँ कहीं वर्नाक्यूलर शब्द दिखाई देता था वहाँ चट उसका अर्थ उर्दू लगा लिया जाता था। निदान, इस धाँधली से ऊबकर ७ फरवरी सन् १९३६ ई० को लेजिस्लेटिव असेंबली में श्री चरण सिंह ने यह प्रश्न किया कि युक्तप्रांत की अदालती अथवा हाकिमी भाषा क्या है ? यह केवल उर्दू ही है अथवा नागरी और फारसी-लिपि में लिखी जानेवाली हिंदुस्तानी ? कहना न होगा कि यह प्रश्न बड़े ठिकाने का था और सरकार की ओर से इसका उत्तर भी ढङ्ग का मिल गया। प्रधान मंत्री के पार्लियामेंटरी सेक्रेटरी ने उत्तर दिया कि हाकिमी भाषा अँगरेजी है और अदा- लती भाषा हिंदुस्तानी है जो नागरी और फारसी दोनों लिपियों में लिखी जाती है सरकार की नीति है कि देवनागरी और फारसी लिपि को समभाव से देखा जाय । उत्तर महत्त्व का है, अतएव इसे मूल रूप में भी देख लें । सरकार का कहना है-