पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२३१

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व्यवहार में हिंदी २२१ अथवा कचहरी में अड़ जाय और नागरी के अतिरिक्त और किसी को न अपनावे। पहले कहा जा चुका है कि सन् १८६८ ई० में राजा शिव प्रसाद सितारेहिंद ने कचहरियों में नागरी के प्रवेश के लिये प्रयत्न किया पर उनको सफलता न मिली। उन्हीं की भाँति बहुतों ने जब तब छिटफुट यत्न किया, परं सभी असफल रहे। अंत में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय मैदान में आए और एक अत्यंत व्यवस्थित ढङ्ग ले इस काम को हाथ में लिया। एक ओर तो उन्होंने नागरी के पक्ष में हस्ताक्षरों की योजना की तो दूसरी ओर बहुत सी सामग्री संचित कर कोर्ट कैरेक्टर एण्ड प्राइमरी एजुकेशन' नाम की पुस्तक लिखी। इन सामग्रियों को हाथ में लेकर प्रांत के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के मंडल के साथ छोटे लाट साहब से मिले और उनकी सरकार को समझा- बुझाकर अपने पक्ष में कर लिया। अंत में ५८ अप्रैल सन् १६०० ई० को सर ए० पी० मैकडानल ने एक विज्ञप्ति निकाल दी, जिससे कचहरियों में नागरी को भी स्थान मिल गया । फिर क्या था ? देश के मुगली लोगों ने ऐसा ऊधम मचाया कि उसका कुछ ठिकाना नहीं। जगह-जगह पर सभायें की गई, जगह जगह से प्रस्तावों की बौछार आई, पर लाट साहब तनिक भी विचलित न हुए और अंत में बड़े लाट साहब की अनुमति से यह आईन बन गया कि सभी लोग अपनी अर्जी शिकायत की दरख्वास्त चाहे नागरी या फारसी-लिपि में दे सकते हैं और सभी कागद जैसे समन आदि जो सरकार की ओर से जनता के लिये निकाले जायेंगे, दोनों लिपियों में यानी नागरी और फारसी-लिपि में लिख्ने अथवा भरे होंगे। सरकार ने इसके साथ ही इस बात का भी प्रबंध कर दिया कि आगे किसी भी व्यक्ति को तभी