पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२२७

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व्यवहार में हिंदी सुलगाई जा रही थी और फलतः आज भी राष्ट्र-जीवन का दम घोटने के लिये पर्याप्त समझी जाती है । पर इसमें दोष किसका है ? सरकार नहीं, आप का। कचहरियों और सरकारी काम-काजों में उर्दू कैसे और किस ओर से धुसी, इसका रंचक आभास तो मिल गया, अब थोड़ा यह भी देख लेना चाहिए कि सरकार इस भाषा के विषय में बराबर कहती क्या आ रही है और उसके कचहरिया बाबू उत्लकी सुनवाई कहाँ तक करते आ रहे हैं। माल के सदर बोर्ड ने उसी समय स्पष्ट कह दिया था कि सरकार फारसी से लदी उर्दू को नहीं पसंद करती। उसकी दृष्टि में तो उस भाषा का व्यवहार होना चाहिए जो किसी शिष्ट सजन की समझ में जो फारसी से सर्वथा अनभिज्ञ हो, सरलता से आ जाय । परंतु बोर्ड की बात अनसुनी कर दी गई। उसने कहा था कि न केवल हिंदी क्रिया और हिंदी प्रत्ययों का प्रयोग किया जाय बल्कि उसकी पदयोजना भी हिंदी हो और उसे फारसी से सर्वथा अनभिज्ञ व्यक्ति भी ससम ले- “You should therefore explain to the officers under your control that itis not the mere subst- itution of Hindee verbs and afixes which the Board wish to see adopted. They desire that every paper shall be written in the phrase in which a well spoken respectable man, altogether unacquainted with Persian, would express himself." ( वही)