पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२२६

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राष्ट्रभाषा पर विचार "The Board propose that the Persian character shall be retained, except in those very few districts in which the Nagree has obtained and established an almost universal currency." (No. III, dated 28ht August, 1840.) अतः हम देखते हैं कि वस्तुतः बोर्ड के सामने फारसी लिपि की रक्षा का प्रश्न है कुछ लोक-लिपि के प्रचार और लोक-वाणी के व्यवहार का उद्योग नहीं। बोर्ड की दृष्टि में यह उचित जान पड़ता है कि फारसी लिपि रहने दी जाय और केवल वहीं से वह हटाई जाय जहाँ नागरी का व्यापक प्रचार और बोलबाला हो गया है। तनिक विचार करने की बात थी कि जनता की लिपि फारसी किस प्रकार कही जा सकती थी और क्योंकर प्रजा के हित के विचार से उसका व्यवहार किया जा सकता था। परंतु बोर्ड ने किया यह कि फारसी-लिपि की रक्षा की ठान ली और फलतःआज तक उसके प्रतापसे वहाँ फारसी-लिपि और फारसी भाषा की प्रधानता बनी है । उसके व्यवहार में देश की खरी भाषा कहाँ है ? उसकी भाषा तो बिगड़ी फारसी या मुगली ही है देश से उसका कौन-सा सीधा लगाव है कि वह बरबस जनता के गले उतारी जाती और उसके व्यवहार की लिपि बताई जाती है ? सच बात तो यह है कि यदि वस्तुतः सरकार लोक का कल्याण चाहती और किसी अपनीति का सहारा न लेती तो कचहरियों में उर्दू को कभी जगह न मिलती और अँगरेजी शासन में हिंदियों के हित के लिये फारसी के मदरसे न खुलते। आज जो चारों ओर उर्दू का झंडा फहराया जा रहा है वह और कुछ नहीं, इसी आग का धुआँ है जो धीरे-धीरे इतने दिनों से बड़ी सावधानी के सथ