पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२२४

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राष्ट्रभाषा पर विचार यहाँ तक तो कोई बात न थी क्योंकि इसमें फारसी की जगह हिंदुस्तानी को दी गई थी और यह मान लिया गया था कि यदि हिंदुस्तानी के साथ उसका फारसी उल्था भी दे दिया जाय तो कोई क्षति नहीं। पर इसके आगे जो उर्दू का उल्लेख किया गया वह हिंदी के लिये घातक सिद्ध हुआ। उर्दू किसी हिंदी-लिपि में कब लिखी गई ? बस उसमें तो कहा गया कि सरकार चाहती है कि साफ और सुबोध उर्दू में कचहरी के काम-काज का विशेषतः सूत्रपात हो। इस प्रकार हम देखते हैं कि इस विधान में यद्यपि उर्दू के साथ ही साथ कहीं-कहीं के लिये हिंदी बोली का भी विधान कर दिया गया है तथापि सच पूछिए तो वस्तुतः इसने हिंदी-भाषा और हिंदी-लिपि की हत्या कर मुगली-भाषा और मुगली-लिपि का प्रचार कर दिया है। कारण, इस प्रकार उसने जो हिंदुस्तानी का ढोंग किया और फारसी को निकाल बाहर करने का जो उपाय रचा वह सब हिंदी के सिर पड़ा और फलतः उसी का सर्वनाश हुआ। देखिए न, सदर दीवानी अदालत ने कहा कि हिंदी जहाँ वह प्रचलित है।' 'प्रचलित' और 'जहाँ का अर्थ ? वह तो घर-घर बरती जाती है। तो भी सरकार का कहना है- "It is the wish of Government that care should be taken especially on first introducing the measure, that the pleadings and procee- dings be recorded in clear intelligible Oordoo, (or Hindee were that dialect is current, ) and that the Native ministerial officers, hitherto accustomed to write a somewhat impure Persian, do not merely substitute a Hindoo-