पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२२०

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राष्ट्रभाषा पर विचार अक्षर नहीं। कंपनी सरकार की निश्चित नीति तो यह है कि दरबारी लोगों की जानकारी के लिये फारसी-भाषा का और फारसी-लिपि का व्यवहार करो और सामान्य जनता के उपयोग के लिये नागरी-भाषा और नागरी लिपि का । एक आईन में साफ- साफ नागरी भाषा का विधान कर यह स्पष्ट दिखा दिया गया है कि कंपनी सरकार की हिंदी का अर्थ है नागरी-भाषा और नागरी अक्षर ही कुछ उर्दू भाषा और नागरी-लिपि अथवा हिंदी-भाषा और फारसी-लिपि नहीं। प्रमाण के लिये तुरत देखिए । उसका स्पष्ट निर्देश है- किसी को इस बात का उजूर नहीं होऐ के उपर के दफे का लिखा हुकुम सभ से वाकीफ नहीं है। हरी ऐक जिले के कलीकटर साहेब को लाजिम है के इस श्राईन के पावने पर ऐक-ऐक केता इसतहारनामा नीचे के सरह से फारसी वो नागरी भाषा के अक्षर में लीखाऐ के अपने मोहर वो दसतखत से अपने जिला मालीकान जमीन वो ईजारेदार जो हजुर में मालगूजारी करता उन सभी के कचहरि में वो अमानि महाल के देसी ताहसीलदार लोग के कचहरि में भी लटकावही...वो कलीकटर साहेब लोग को लाजीम है के इसतहारनामा अपने कचहरीमो वो अदालत जज साहेब लोग के कचहरि में भी तमामी श्रादमी के बुझने के वास्ते लटकावही । (अँगरेजी सन् १८०३ साल ३१ आईन २० दफा) विचार करने की बात है कि जिस उर्दू भाषा और फारसी- लिपि के लिये आज इतना अधम मचाया जा रहा है उसका उल्लेख कहीं भी किसी भी आईन में नहीं है। यदि है तो फारसी भाषा और फारसी-लिपि एवं हिंदी-भाषा और नागरी-लिपि का ही। उर्दू-कारसी-लिपि का विधान तो तब हुआ जब मुगलों की