पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२२

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१२ राष्ट्रभाषा पर बिचार दफनके तावे' फाल है अगर यह मुज़क्कर है तो वह भी मुज़क्कर है और अगर सुवन्नस है तो मुवन्नस । यह कायदा मुवाफिक कायदा अरबी के है फि सैयद अल्सना है और कयास सही भी इसकी ताईद करता है। बर खिलाफ मुहावरा उर्दू के कि उसमें निस्बत फेल की मऊ की तरफ़ कर मुज़कर को मुवन्नस और मुवन्नस को मुज़कर कर देते हैं।" (वही, पृ० ४६-५०) परदेशी उर्दू अागाह को भाती तो नहीं पर किसी प्रकार उन पर अपना रंग जमा ही लेती है और आगाह को कुछ उसकी सी करनी ही पड़ती है उर्दू घर-बार छुड़ाकर आगाह को अपना दास न बना सकी, पर आज दक्खिनी है कहाँ ! श्रागाह ने भी तो भाषा के प्रकरण में अरवी को ही प्रमाण माना है ? परंतु दक्खिनी को उर्दू की सबसे वेढंगी बात जान पड़ती है उसकी क्रिया का कर्म के अनुसार रूप धारण करना । कमी डाक्टर राजेंद्रप्रसाद ने भी सम्मेलन से ऐसा ही कुछ कहा था और आज डाक्टर सुनीति- कुमार चाटुा भी कामकाजो अथवा बोलचाल की हिंदुस्थानी को इससे मुक्त करना चाहते हैं। अच्छा, यह तो विवाद वा विचार की वात ठहरी । यहाँ कहना यह था कि यदि दिल्ली के दौलताबाद जा पड़ने से दक्खिनी पैदा हो गई तो उसमें यह भेद कहाँ से आ गया । यह तो पूर्वी वा बिहारी की सुधि दिलाता है, देहलवी की नहीं । वात यह है कि उर्दू की प्राचीनता सिद्ध करने के लिये दक्खिनी का जितना नाम लिया जाता है उतना उस पर विचार नहीं किया जाता । नहीं, यदि दक्खिनी का स्वतंत्र अध्ययन हो दो भाषा के क्षेत्र में कुछ और ही रहस्य खुलें। १-अधीन | २-कर्चा । ३-पुल्लिंग। ४-स्त्रीलिंग। प्रमुख । ६-भाषा । ७-कर्म । -