पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२१९

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व्यवहार में हिंदी २०६ है के जिस वक्त इस श्राइन का फारसी या हिंदी तरजमा उनके कने पहुंचे तो उसके तई अपनी कचहरीयों में पढ़वावें और मशहूर करें और इसी तरह से जिन प्राइनी ने के इस श्राइन के रू से उपर के दिलों में चलन पाई है उनका तरजमा भी पड़वावें और मशहूर करें और ३ दफे के जिलों की दीवानी अदालत के वकीलों को हूकम है के जौन सी श्राईन के उपर के जिलों की दीवानी अदालत के मोकदमों से किस-किस तरह का इलाका रखना है तो उस पाईन के तरजने की नकल लेकर अपने पास रख छोड़ें बलके जज साहिब और मजिस्टरट साहिबों को यह भी जरूर है के जो नाले सन् १८०३ को ४६ श्राईन के १० दफ के रू से शहरों और अपने जिलों के काजियों को देखें इसी तरह पर छोटे बड़े के खवर के लिए भोनसिफों की कचहरियों में के वे मोनतिफ सन् १८०३ की १६ प्राईन के मोवाफिक ठहरे हैं और ऐने ही तहसीलदार और दारोगों की कचहरियों में के ३५ श्राईन के रू से पुलिस इखतेयार उनको दिया गया है पढ़वावें और मशहूर फरवावें और जाना जावे के लेतनी आईन के धागे चल के बनेंगी इस काऐदे के मोवाफिक इसी तरद पर शोहरत पायेंगी और पाऐ हुऐ और फतह किऐ मूलकों के सत्र महलों में चलन पावेगी (अँगरेजी सन् १८०५ साल आईन ३१ दफा) कंपनी सरकार के इस आईन को सामने रखकर ध्यान से देखिए और कहिए कि भाषा के विषय में कंपनी सरकार की नीति क्या है और वह किस भाषा और किस लिपि का व्यवहार किस दृष्टि से चाहती है। फारसी तरजमा' के बारे में तो इतना जान लीजिए कि वस्तुतः फारसी ही उस समय की राजभाषा थी और उसी में शाही काम-काज होते थे। रही 'हिंदी' की बात तो उसके संबंध में इतना मान लीजिए कि हिंदी से कंपनी सरकार का तात्पर्य है हिंदी भाषा और हिंदी अक्षर-कुछ उर्दू भाषा और फारसी-