पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२१८

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२०६ राष्ट्रभाषा पर विचार लगा कि हिंदी और नागरी से सरकार का कोई सरोकार नहीं। अर्थात् युत् प्रांत की सरकार तो उर्दू ज़बान और फारसी लिपि को अपनाती है कुछ हिंदी भाषा और नागरी लिपि को नहीं। उधर ऐसे महानुभावों की भी कुछ विभूति जगी है जो लगातार कितने रूपों में इसी की रट लगाते हैं कि उर्दू सदा से कचहरियों की भाषा रही है और आज द्वेषवश कुछ 'आरिया' अथवा 'समाई' लोग ही उसे हटाकर उसकी जगह एक बनावटी भाषा यानी हिंदी को चालू करना चाहते हैं। इस प्रकार कुछ धुड़की कुछ धमकी और कुछ पक्षपात के पंजे से बच भागने के लिये लोग चुपचाप अपनी भाषा और अपनी लिपि को तिलांजलि दे उर्दू का दम भरते और दफ्तरों की सतबेझड़ी बोली को अपनाते हैं। उदार हाकिम भी प्रमादवश मौन रह जाते और कर हाकिमों को और भी खुलकर खेलने का अवसर देते हैं। निदान यह उचित जान पड़ा कि युक्तप्रांत की सरत जनता को इस बात से खूब सचेत और भलीभाँति सावधान कर दिया जाय कि भविष्य में वह कभी इस प्रकार के चक्कर में न पड़े और अपने भाषा-संबंधी अधिकार से अभिज्ञ हो उसकी प्राप्ति के लिये पूरा प्रयत्न करे। और यदि कहीं से किसी प्रकार की कोई अड्चन उसके सामने आए तो उसकी सूचना सरकार तथा समस्त देश को दे और फिर देखे कि उसका साधु साहस कितना शीघ्र सफल होता है-मुंशी जी कैसे तुरत उसका काम उसकी भाषा में कर देते हैं। अच्छा तो दूर की बात जाने दीजिए। लीजिए अभी उस दिन कंपनी सरकार ने कहा था--- इस अाईन के ३ दफे के जिलों (अलीगढ़, सहारनपुर, आगरा और बुंदेलखंड ) के जज साहिब और मजिसटरट साहिब को लाजिम