पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२१७

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१७-व्यवहार में हिंदी सरकार कितने दिनों से बार-बार बराबर यही कहती आ रही है कि कचहरियों और दफ्तरों का काम-काज सदा ऐसी सरल और सुवोध बोलचाल की भाषा में हो जो अपढ़ जनता की समझ में भी पा सके और उनमें ऐसी लिपि का व्यवहार हो जो जनता की चिर परिचित सुगम लिपि हो, पर देखने में यह श्रा रहा है कि हाकिमों की उपेक्षा वकीलों की असावधानी, मुंशियों की पेट-पूजा और अहलकारों की कूट लीला के कारण युक्तप्रांत में कुछ और ही भाषा और ही लिपि का बोलबाला है । यहाँ की कचहरियों में जो भाषा वरती जाती है वह सचमुच कहाँ की देश-भाषा है, इसका पता आज तक न तो सरकार को ही चल सका और न उसकी प्राण प्रिय प्रजा को ही फिर भी उसका व्यवहार बराबर हो रहा है। कारण यह है कि उसके उपयोग से प्रांत की पढ़ी-लिखी साक्षर जनता भी सदा सरकारी लोगों की मुट्ठी में बनी रहती है और कभी भूलकर भी उनको धता नहीं बता सकती। यदि कभी किसी ने अपनी बहुमुखी विद्या के बल पर कुछ साहस किया भी तो शिकस्ता लिपि ने चट उसे पछाड़ दिया और अंत में हारकर विवश हो मुंशी जी की शरण में जाना ही पड़ा। तभी तो यह एक स्वर से कहा जाता है कि सचमुच कचहरी के राजा तो मुंशी जी हैं, साहब लोग तो उनके हाथ के खिलौने हैं। इधर जनता कुछ जगी और अपने अधिकार के लिये आगे बढ़ी तो तरह-तरह गए और प्रायः यह कहा जाने