पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२१६

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राष्ट्रभाषा पर विचार भूल सकता है ? सचमुच तुम तो अमर हो-अमर नहीं, देवता । समझे न ? किंतु एक बात अपनी भी मान लो। कहते हो- "संस्कृत में छ कारक हैं, हिंदी उर्दू में दो या तीन। कहते तो ठीक ही हो पर समझते इतना भी नहीं कि 'हिंदी उर्दू में दो कारक' मानने से काम नहीं चलेगा। बस, तुम्हें तो मानना होगा हिंदुस्तानी में तीन कारक-महात्मा गांधी, मुसलिम देवता अल्लामा सुलैमान नवी और स्वयं डाक्टर ताराचंद । बस, इसीसे तुम्हारा हिंदु- स्तानी का तिकड़म चलेगा, कुछ दो कारक मान लेने से नहीं। कारक को हिंदुस्तानी में क्या कहेंगे यह हम नहीं जानते पर तारा को संस्कृति में कहेंगे ताराचंद्र इसमें संदेह नहीं। तो क्या 'तारा- चंद' के जीते हुए संस्कृत सचमुच मर गई ? अजी! कहाँ की बात करते हो ? 'तारा' संस्कृत है तो 'चंद' प्राकृत । बस, कोई कुछ भी बकता रहे पर भारत का नाम चलेगा इसी संस्कृत और प्राकृत से-तत्सम और तद्भव से, कुछ किसी बनावटी हिंदुस्तानी से कदापि नहीं।