पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२११

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हिंदुस्तानी-प्रचार सभा मामा को मायूँ इसलिये बनाया गया कि फारसी में 'मामा' बर की खादिमा को कहते हैं। माँ के भाई खादिमा का नाम देना मुनासिब न था। इसी रिवायत से मामी में भी तबदीली हुई। चूंकि शुमाली हिंद के लहज़४ में आखिर इमला के हुरूपोइल्लन के बाद चूनगुन्ना नावाँदा मेहमान की तरह श्रा मौजूद होता है इसलिये चाँचाँ (मुलगपाड़ा) के बचाने को महा चचा कहने लगे जिसकी तानीस चाची की जगह सहल कयदे के तहत ची वी ( दरियाये लताफ़त पृ० २४३ की पाद टिप्पणी) 'मामा' और 'चाचा' को जिस कारण मानूऔर 'चचा' बनना पड़ा वह आप के सामने है। इससे आप भली भाँति समझ सकते हैं कि वस्तुतः उर्दू है किस चिड़िया का नाम । उधर तो फारसी की चपेट में पड़कर 'मामा' 'मामू' बन गए और इधर गवारों से भाग निकलने के लिये 'चाचा' 'चचा' बन बैठे। ऐसी स्थिति में कहा नहीं जा सकता कि वर्धा की हिंदुस्तानी क्या रूप धारण करेगी। किंतु जनाव 'कैफी साहब से सचाई से पूछा जा सकता है कि सच तो कहें 'दत्तात्रेय' का 'दत्तातिरिया' कैसे हो गया। संभव है, डाक्टर अब्दुल हक साहब तुरत बोल उठे कि 'उर्दू औरतों की जवान हैं। और औरतों की बोली में 'तिरिया' नहीं तो क्या होगा। यही सही, किंतु 'औरतों की जबान' यानी उर्दू में इसका अर्थ क्या होगा, कुछ इसको भी तो स्पष्ट करें। हमें इस 'दत्तातिरिया' की चिंता नहीं। यह तो अपनी रुचि की बात है कि पंडित वृजमोहन दत्तातिरिया साहब १-सेविका । २---विचार । ३---उत्तरी । ४-काकु, स्वरसंयोग । ५- अलिफ काव, याय, प्रादि अक्षर | ६----अशिक्षित । ७-अघांन ।