पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२१

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राष्ट्रभाषा "जब शाहाने हिंद इस गुलजार' जन्नत नज़ीर को तसखीर किए तर्ज व रोज़मर्रा दक्खिनी नहज मुहावरा हिंदी से तबदील पाने लगे ता ाँ कि रमजा-रफ़्ता इस बात से लोगों को शरम श्राने लगी और हिंदुस्तान मुदत लग ज़बान हिंदी कि उसे ब्रज भाषा बोलते हैं रबाज रखती थी अगर चे लात संस्कृत उनकी अरले उसूल" और मखरज फुनून फोर' उसूल है।" (१० ४६ ) उर्दू के प्रसंग को यहीं छोड़ अब हम थोड़ा यह दिखा देना चाहते हैं कि दक्षिण का हिंदी से वस्तुतः क्या संबंध रहा है। परंतु इस संबंध पर विचार करने के पूर्व ही आगाह के एक अन्य कथन पर भी ध्यान देना चाहिए। आपको 'उर्दू की भाका' माती नहीं। कारण, उन्हीं के मुँह से सुनिए- "जब ज़बान कदीम दक्खिनी इस सत्रन से कि श्रागे भरकूम हुआ, इस असर में रायज नहीं है, उसे छोड़ दिया और सुहावरा साफ व शुस्ता११ को कि करीब रोज़मर्रा उर्दू की है एख्तयार किया । सिर्फ इस भाके में कहने से दो चीज़ माने हुए अव्वल यह कि तासीर १२ बतन याने दकन इसमें बाकी है क्या वास्ते कि अजदाद पिदरी व मादरी इस अासी के और सब कौम इसकी बीजापूरी ई, दूसरे यह कि बाज़वज़ाय १५ इस मुहावरा के मेरे दिल में भाते नहीं। अजा यह कि तजकीर ७ व तानीसे १८ फेल नज़दीक अहले १--उद्यान । २ स्वर्गाश्म । ३--अधीन। ४-भाषा । ५- पद्धति को जड़ । ६. स्रोत । ७~~-कलानौं । ८-अंगो अर्थात् संस्कृत भाषा ही उसकी रीति-नीति और गुण-वृत्ति का मूल है ।:-लिखित । १०-परंपरा । ११ –निखरा । १२-प्रभाव । १३--पूर्वज । १४- दुखिया । १५-ढंग । १६–इस वाक्य से । १७--पुल्लिंगता । १८- स्त्रीलिंगता। जुमला१६