पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२०९

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हिंदुस्तानी-प्रचार सभा और किसी लफ़्ज़ के उर्दू न होने से यह मुराद है कि उर्दू में हुरूफ को कमी-वेशी से वह खराद पर नहीं चढ़ा ख्वाह दूसरी जगह मुरब्बज हो । बाजे अल्फाज़ शहर में और दूसरी जगह मुशतरफ लेकिन साज़ वो नादिर। जैसे सूरज, तारा, साग, पान वगैरह। मुख्तसर यह कि उन लफ्ज़ों के सिवा जिन्हें शहर के फसीह और दूसरी जगह के बाशिन्दे इस्तेमाल करें ऐसा हर लफ़्ज़ जिसको बहले. शहर दो तलप्रफुज़ों में श्रदा करें उन दोनों लफ़्ज़ों में बो लफ्ज़ कि दूसरी जगह तालिम के सिवा मुरव्वज न हो ज़बान उर्दू है । ( दरियाये लताफत, वही, पृ. २७०) 'शालिम के सिवा मुरव्वज न हो जबान उर्दू है' की तो आप आज महात्मा गांधी की कृपा और वर्धा की हिंदुस्तानी तालीमी संघ की अनुकम्पा से यों भी समझ सकते हैं कि जो 'तालीम के सिवा मुरब्बन न हो जवान हिंदुस्तानी है। कारण, आज हिंदु- स्तानी है भी उर्दू का पर्याय और महात्मा गांधी कहते भी हैं कि वह कहीं है तो नहीं पर कहीं गुप्त अवश्य है । उसको प्रकट करना ही उनकी बर्षाई योजना का प्रयत्न है। ठीक है। सगर- सुतों को तारने का जो भगीरथ प्रयत्न हुआ उसी का परिणाम तो गंगा है. फिर भारत को तारने का जो कलामी प्रयत्न हो रहा है उसका फल सरस्वती क्यों न हो । किंतु विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या 'वंदे मातरम्' से खार खानेवाली और घूम घूम कर दरबार में 'बंदगी' बजाने तथा मादर' का प्रयोग करने वाली उर्दू इस सरस्वती की देवपूजा को सह सकेगी। महात्मा जी की सरस्वती हिंदुस्तानी के रूप में फूट रही है। वह है तो अवश्य पर देश नहीं महात्मा गांधी के मानस में। उसका प्रचार कहीं है. १-अभिप्राय । २--प्रचलित । ३-सामी। ४-नक्षेप। ५-शिष्ट । ६-नागरिक --उच्चारणों।८-शिक्षा।