पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२०८

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राष्ट्रभाषा पर विचार हुए आपने कभी 'रास' का नाम नहीं सुना है ? अरे! आप क्या कहते ? क्या और किस हिंदुस्तानी के लोभ में किस हिंदुस्तान को कितना जपाट सिद्ध करना चाहते हैं? क्या आपको पता नहीं कि 'सवार' शुद्ध 'अवसर' ले बना है और आपके पड़ोस के लोग फलतः आज भी उसे ठेठ में 'असवार' कहते हैं, 'सवार' नहीं ! 'सवार' तो इसीलिये बनाया गया है कि वह मुसलमानों के साथ यहाँ पा सके। नहीं तो ईसा के २४ वर्ष पहले तक तो स्वयं मुसलमानों के घर अरव में घोड़े का पता ही नहीं चलता । कुछ इसकी भी सुधि है ? यही दशा 'जुल' की भी है । यह झोल की खराबी है जो लिपि-दोष के कारण हो गई है। 'झ' मुसलमानी लिपि में है कहाँ ? कुछ भाषाशास्त्र और 'कोष' से भी तो पूछ देखें ! कि श्रापकी हिंदुस्तानी सबको खा चबाकर ही पुष्ट होगी ? अरे! देश का जिसे थोड़ा भी अभिमान है वह आपकी इस विलक्षण खोज से इतना तो सीख ही लेगा कि अपने को उर्दू के चक्कर से मुक्त करे और सर्वथा हिंदी का हो रहे । हिंदी उन शब्दों को कभी छोड़ नहीं सकती जिनमें इस देश का मान छिपा है और जिसकी रक्षा आज तक इस मुसलमानी आक्रमण से होती आ रही है। मुसलमानी इसलिये कि श्राप इसी को इसलाम समझते हैं, नहीं तो हम तो इसको शाही लटके के सिवा और कुछ नहीं समझते और नहीं समझते उस स्वर्गीय स्वराज्य ही को कुछ जिसमें सब कुछ तो रहे पर अपना कुछ भी न रहे और यदि रहे भी तो अपने रूप में कदापि नहीं। हाँ, उर्दू के रूप में होकर हौ। अच्छा, तो उर्दू का रूप है क्या ? सुनिये, सैयद इंशा खुले रूप में कहते हैं-