पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२०२

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१६२ राष्ट्रभाषा पर विचार 'रामायन' के बाज़ अशार-- राम अनेक गरीव निवाजे । लोग बर बर बरद बिराजे ॥ गनी गरीब गराम नर नागर । पंडित मोटे मिले उजागर ।। (मोक्कालात शिवली, जिल्द दोयम, दारुल मुसन्निझीन आजमगढ़, सन् १९३१ ई०, पृ०७१) 'कालिदास की 'भाका रामायन' का हमें पता नहीं पर हम इतना पूछ ही सकते हैं कि क्या किसी भाका' के सपूत सामने कभी किसी 'रामायन' में 'लोग बरबर बरद बिराजे' अथवा 'पंडित मोटे मिले उजागर' जैसा पाठ मिला है और यदि मिला है तो इसका अर्थ क्या है ? प्रसंगवश हम इतना और कह देना चाहते हैं कि अल्लामा शिबली नोमानी का 'नोमान' से कोई जन्मजात वा वंशजात सम्बन्ध न था। नहीं उनका वंश तो सर्वथा हिंदी था। आप आजमगढ़ के बिनवल गाँव में जन्मे थे और वंश के रौतारा थे अर्थात् ठेठ देशी थे। फिर भी जानते इतना भी नहीं कि कालिदास किस भाषा का कवि है और 'भाषा' में किसने 'रामायन' की रचना, नहीं नहीं तरजमा किया और फिर भी विरोध करते हैं उस विश्ववन्द्य कवि की उस रचना का जिसको पाठ्यक्रम में रखने का प्रस्ताव करता है सात समुंद्र पार का एक जीव । माना कि रामायण हिंदू है और माना कि रामायण हिंदी है और यह भी मान लिया कि उसमें काफिरों की 'बुत परस्ता, है, और यह भी मान लिया कि किसी मुसल- मान-बच्चा को उसे नहीं पढ़ना चाहिए। सब कुछ माना पर इसी से यह भी कैसे मान लिया जाय कि किसी अल्लामा नोमानी को इसी से यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वह हमारे मुकुटमणियों का उपहास करे और इस प्रकार मनमाना वा मनगढंत पाठ देकर