पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२०१

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हिंदुस्तानी-प्रचार सभा १९१ अल्लामा शिवली नोमानी के इस पत्र पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता इसलिये पड़ी कि इस कमेटी का भी ध्येय था कि- इस्कूल और कालिजों के लिये देशी चबान का निसावेतालीम ऐसी जबान में मुरतब किया जाय कि एक ही इबारत के साथ उर्दू, हिंदी दोनों जवानों में पढ़ा जा सके। (वही, पृष्ठ ६७६) इसका निश्चय क्या हुआ इसके कहने से क्या लास ? लाभ तो इसे भूल जाने में ही है। कारण कि इसको पेश किया था 'बर्न साहब ने । बर्न साहब सरकारी जीव थे। उन्हें जाने दीजिए और जाने दीजिए उन 'मुसलमान मेंबरों को जिन्होंने 'रामायन' के विरोध में उक्त मौलाना का साथ नहीं दिया था और जाने दीजिए उन हिंदुओं को भी जिनने इस संग्राम में मौलाना का हाथ बटाया था; परंतु सब कुछ होते हुए भी हम आज हिंदुस्तानी के प्रसंग में इस बात को कैसे भूल सकते हैं कि इसी विजयी अल्लामा 'रामायन का और किसी रामायन' का पता इतना है कि आप किस तपाक नहीं नहीं किस अधिकार से लिखते हैं- हिंदुओं में सबसे बड़ा शाइर आखिर जमानः का कालीदास गुजरा है जिसने रामायन का भाका में तरजमा किया है । नुक्ताश- नासों का बयान है कि कुदरते १२ जबान के लेहाज से 'पदमावत' किसी तरह 'रामायन' से कम नहीं और इस कदर तो हर शख्स देख सकता है कि 'पदमावत' के सफहः पढ़ते चले जाओ अरबी-फारसी के अल्फाज मुतलक' 3 नहीं आते और यो साजयो नादिर १४ तोमा- बम' भी ऐसे अल्फाज से खाली नहीं। मुलाहिजा हो- ६-पाठ्यक्रम । १०-क्रमबद्ध । ११-जानकारों। १२-शक्ति । १३-बिल्कुल । १४-यदाकदा ।