पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२०

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१० राष्ट्रभाषा पर विचार के नव्याव सादत अलीखाँ के दरबार में । अतः इसके प्रमाण होने में कोई त्रुटि नहीं। फिर भी अच्छी तरह आँख खोलने के लिये श्री मुहम्मद बाकर 'श्रागाह' (११५८-१२२० हि०) जैसे दक्खिनी मौलवी की भी सनद लीजिए। आप कहते हैं- "वली गुजराती ग़ज़ल रेखता की ईजाद में सभों का मुब्तदा' और उस्ताद है। बाद उसके जो सुखुनसंजाने हिन्द बुरोज़ किए (1) वेशुबहा उस नहज को उससे लिये और मिन५ बाद उसको बासल्व खास मखसूस कर दिये और उसे उर्दू के भाके से मौसूम किए" (मद्रास में उर्दू, इदारा अदतियात उर्दू, संख्या ८१, हैदरा- बाद दकन, १६३८ ई. पृष्ठ ४७) । आगे चलकर फिर यही 'अगाह' साहब बताते हैं- 'अवाखिर अहद मुहम्मदशाही से इस असर तलक इस फ़न में अक्सर मशाहीर; शुअरा अरसा में श्राए और अकसाम° मंजू- मात' को जलवे१२ में लाए हैं, मिस्ल दर्द, मज़हर फुगाँ......" मौलाना आगाह ने 'मसनवी गुलजारे इश्क' की रचना सन् १२११ हि० में की अर्थात् सैयद इंशा से १२ वर्ष पहले अपनी मसनवी में उर्दू की उत्पत्ति की उक्त सूचना दी। आगाह के कहले से इतना और भी स्पष्ट हो जाता है कि हो न हो उर्दू की ईजाद मुहम्मदशाह रँगीले के शासन में ही हुई। इसके पहले मुग़ल दरवार की हिंदी क्या थी उसे भी कुछ जान लें तो उर्दू का भेद खुले । अच्छा तो वही आगाह साहब फिर हमें आगाह करते हैं- १-अग्रणी। २--कवि | ३-प्रकट । ४-प्रणाली । ५-से । ६-रीति के साथ । ७-नामी । ८-प्रसिद्ध । १-परंपरा । १०-- भेदों। ११--पद्यों । १२-प्रकाश |