पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१९९

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१६--हिंदुस्तानी-प्रचार सभा हिंदुस्तानी-प्रचार-सभा' का होहनार क्या है इसको हम ठीक-ठीक नहीं कह सकते परंतु इतना जानते अवश्य हैं कि अभी-अभी होली के अवसर पर महात्मा गांधी की पुरोहिताई में वर्धा में गर्भ की हिंदुस्तानी का जो राज्याभिषेक हुआ है वह किसी प्रकार भी महाकवि कालिदास के रघुवंश' की गर्भवती पटरानी' के गर्भ के राज्याभिषेक से कम नहीं है। हाँ, यदि इसमें किसी प्रकार की कमी है तो बस इतनी भर कि इसके आचार्य इतना नहीं जानते कि वस्तुतः यह गर्भ है अथवा नहीं। उनको ता बस यही पर्याप्त है कि यह कुछ न कुछ है अवश्य । हम मी इस अवश्य का स्वागत करते हैं और स्वागत नहीं नहीं अगवानी वा इस्तकबाल करते हैं इस गर्भ के राज्याभिषेक का। भला कौन-सा ऐसा प्राणी होगा जो इस राज्याभिषेक का स्वागत न करे और न करे इस गर्भ की हिंदुस्तानी की परिचर्या । किंतु हमें यदि आशंका है तो केवल इसी बात की कि कहीं यह 'गर्भ' न होकर 'रोग' न निकले और केवल अपने जनमले नाश को ही कहीं चरितार्थ न करे । कारण यही कि अभी हमारी मेधा बनी है और वह समझती भी खूब है कि दो के मेल से तीसरा उत्पन्न भले ही होता हो परंतु तीन से दो का मेल नहीं होता और इस देश में दो क्यों, पहले से भी तीन हैं। महात्मा गांधी अँगरेजी को पी सकते हैं, अल्लामा सैयद रोमी को उड़ा सकते हैं किंतु कोई कुछ भी कहे सत्य पुकार कर कहता और इतिहास उठाकर डंका बजा कर कहता है कि अँगरेजी ने इतने अल्पकाल में जो कुछ