पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१९०

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१०० राष्ट्रभाषा पर विचार अदालतों, कचहरियों और स्कूलों में भी उर्दू लिपि का भरपूर प्रचार है । साधारण तौर पर यू० पी० व विहार के निवासी उर्दू लिपि से परिचित हैं। उर्दू लिपि भी काफी लोग जानते भी हैं। इसलिए इन दोनों लिपियों का अस्तित्व मानना पड़ा और भाषा रूप के साथ उसके दोनों चोगों का भी जिक्र हुआ। अब संमेलन इस वस्तुस्थिति के विरुद्ध जाने का निश्चय करता है और वस्तुस्थिति से अपने को अलग रखना चाहता है तब क्या राष्ट्रभाषा-प्रेमियों के लिये भी यह संभव है कि संमेलन का यह नेतृत्व स्वीकार करें, और यह समझे कि ३० दिसंबर १९४१ के पहले जो बस्तु स्थिति थी वह दूसरे दिन गायब हो गई या उसके बाद गायब हो सकती है ? सिर्फ नागरी लिपि के द्वारा जो कोई राष्ट्रभाषा सीखे क्या वह पंजाब और यू० पी० में ओर से दोनों लिपियों को समान अधिकार प्राप्त है; फिर सरकारी कामकाज में फारसी की अधिकता अवश्य है पर जनता में फारसी लिपि का प्रचार बहुत कम है और प्रतिदिन घटता ही जा रहा है। बिहार में तो कांग्रेस के प्रताप से उर्दू का प्रचलन हुना है नहीं तो वहाँ मुसलिम जनता में भी उर्दू नाम मात्र को थी और सरकार में तो थी ही नहीं। १६-संमेलन 'वस्तुस्थिति को स्पष्ट करता विरोध नहीं। १७-इस 'क्या' का उत्तर कितना सरल है! हाँ। जाकर तो श्राप अपना काम चला सकते हैं पर लिखकर भरपूर वैसा नहीं । अभी तो आपको नागरी और फारसी के साथ ही गुरुमुखी और अंगरेजी से भी काम लेना पड़ेगा। कल की आप जानें और आपकी राष्ट्रलिपि । उसका