पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१७३

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उर्दू का अभिमान इसलिये इस 'अंजुमन' के बड़े रगड़ों झगड़ों को खूब समझ सकते हो, अगर समझना और समझ से काम लेना चाहो तो नहीं तो 'ज्ञानलवदुर्विदग्ध से तो ब्रह्मा भी हार मान चुके हैं फिर किसी 'चन्द्र' की बिसात ही क्या? सो भी किसी 'चंद' को सम- झाने की? अच्छा, तो देखो कि सन् ११६६ हि० में जो ११-१२ वर्ष से कोशिश हो रही थी सो क्या थी । यही 'उर्दू अंजुमन' की कोशिश न? तो ११६९ में से ११ व १२ को निकाल दो और कहो, खुल कर तुरत कहो कि सन् ११५७-५८ हिजरी में उमदतुल्मुक ने और उमराके मशविरः से दिल्ली में उर्दू को जन्म दिया। धवडामो नहीं देखो, सुनो और जानो कि नव्वाव सआदत अली खां के दरबार लखनऊ में सन् १२२३ हि में सैयद 'इंशा' जैसे भाषा- शास्त्री ने किस सचाई से लिख दिया-- खुशबयानान प्रांजा मुन्तफिक शुदः श्रज़ ज़बानहाय मुत्तादिद अल्फ़ाज़ दिलचस जुदा नमूदः व दर वाज़े इबारत व अल्फाज तसर्सफ़ बकारबुर्दः जबाने ताज़ः सिवाय ज़बानहाय दीगर बहम रसानीदंद ब उर्दू मौसूम साखतन्द ! ( दरियाए लताफ़त, वही, पृ० २) इसी को आप ही के साथी अल्लामा दत्तातिरि या 'कैफी' का किया हुआ, उद् अनुवाद, नही नहीं, तरजमा है- यहां से खुशक्यानों ने मुत्तफ़िक होकर मुतादिद जवानों से अच्छे अच्छे लफ़्ज़ निकाले और बाजे इबारतों और अल्फाज़ में तसरुफ़ कर के और ज़बानों से अलग एक नई जवान पैदा की जिसका नाम उर्दू रक्खा, (दरियाए लताफत, अंजुमनए तरकीए उर्दू, १६३५ ई०, +