पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१७२

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राष्ट्रभाषा पर विचार के जोम में और न जाने किस विद्या और न जाने किस बूते पर दोष देते हैं हिंदी को। गाल बजाने और कलम चलाने से उन्हें मुग्धों में प्रतिष्ठा और यारों में दाद मिल सकती है पर किसी शिष्ट और सभ्य समाज में उनका सत्कार नहीं हो सकता। कारण, वस्तुतः ऐसे ही वे जीव हैं जो न जाने कितने दिनों से इस राष्ट्र में विनाश का बीज बो रहे हैं और जानते इतना भी नहीं कि उर्दू उसी बीज की पौध है। लो यहीं उर्दू की उस दिव्य लीला को भी देख लो जो हातिम के कथनानुसार ११-१२ वर्ष से चल रही थी। सुनो, अदीबुल मुल्क नव्वाब सैयद नसीर हुसैन खाँ साहब फरमाते हैं। सुनो, जिन्होंने उर्दू की अनसुनी हो जाने पर लखनऊ के 'हिंदू-मुसलिम-पैक्ट' की सदस्यता को तलाक दे दिया था उनका कहना है किसी 'सभाई' या 'फोर्टविलियम कालेज' का नहीं । हाँ, कहते हैं- उमदतुल्मुल्क ने, और उमरा के मशविरः से देहली में एक उर्दू 'अंजुमन' कायम की। उसके जलसे होते, जबान के मसयले छिड़ते, चीजों के उर्दू नाम रक्खे जाते, लफ़्जों और मुहावरों पर बहसें होती, और बड़े रगड़ों झगड़ों और छानवीन के बाद अंजुमन' के दफ्तर में वह तहकीकशुदा अल्फ़ाज़ व महारात कलमबन्द होकर महफूज किए जाते; और बकौल 'सियाल मुताखरीन' इनकी नकलें हिंद के उमरा व रूसा के पास भेज दी जाती और वह उसकी तकलीद को फख जानते और अपनी जगह उन लफ्ज़ों को फैलाते । (मुग़ल और उर्दू एम० ए०, उसमानी एंड संस, फियर्सलेन कलकत्ता, १९३३ ई०, पृ०६०) बिहार की हिंदुस्तानी कमेटी, नहीं नहीं, बिहार के सिर मड़ी गई हिंदुस्तान की हिंदुस्तानी कमेटी के आप भी एक मेम्बर हो į