पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१६९

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उर्द, का अभिमान १५३ किताबमणि कुरान दीहमणि कलाम अबदनमणि श्रादम कामन हबा रागनमणि भैरो भाषामणि व्रज की जोतमणि दीहक दीपकमणि नार दोजक शीतल मलो भिहिस्त एसी भाँत सुजान अस्तुति कीनी । (संगीत रागकल्पद्रुम, द्वितीय भाग, पृ० २६४) किंतु आप तो फारसी के जीव ठहरे। अतः लीजिए फारसी को, और देखिए भी इसे फारसी के ही चश्मे से। देखा ? कट्टर आलमगीर औरंगजेब के शासन में उसके परम प्रिय पुत्र अथवा जिस किसी के लिये लिखा जा रहा है 'ब्रजभाषा' का 'व्याकरण' और उसमें बताया जा रहा है --- व जवान अहल बृज अफशह जवानहा अस्त आंचि मियान दोश्राब गंगा व जमुना फि दो रूद मशहूर अंद वाकाशुदः अस्त, मिस्ल चन्द वार वगैरहः वह फसाहत मंसूत्र अस्त । व अन्दवार नाम मोज़ा- अस्त मारूफ व मशहूर । व चूई ज़बान शामिल अशनार रंगीन व इबारत शीरी व वस्फ़ आशिक व माशूक अस्त, व बर ज़बाग अहल नज़म ब साहब तबा वेश्तर मुस्तामल ब जारी अस्त । विनाबरों बकवा- यद कुलियः श्रां परदाखतःआमद । (ए ग्रामर आव ब्रजभाषा, विश्वभारती बुकशाप, कलकत्ता, १६३५ ई०, पृ० ५४-५ ) अपनी भाषा में मीरजा खां के कहने का अर्थ है कि ब्रजभाषियों की भाषा सभी भाषाओं में श्रेष्ठ है। गंगा और यमुना के बीच में जो देश है, जैसे चन्दवार आदि, वह भी शिष्ट गिना जाता है। चन्दवार एक प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध स्यान है । चूँकि इसी भाषा में प्रिय-प्रिया की प्रशंसा और सरस एव अलंकृत कविता है तथा यही भाषा शिष्टों और काब्य की व्यापक भाषा है इसलिए इसके व्याकरण की रचना की जाती है।