पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१६५

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उर्दू का अभिमान रा गीरन्द श्रां शहर राई उर्दू नामन्द । लेकिन जमा शुदन ई हज़रात दर हेच शहरे सिवाय लखनऊ निन्द फकीर सावित नीश्त । गो वाशिन्दगाने मुर्शिदाबाद व अज़ीमाबाद बज़ात खुद उर्दूदां व शहर खुद रा उर्दू दानन्द ! अस्तु, सैयद इंशा के कहने का सीधा अर्थ यह है कि- यह (शाही) संघ जहाँ कहीं जाता है, इसकी संतान को 'दिल्लीवाल' और इसके महल्ले को दिल्लीवालों का महल्ला कहते हैं । और यदि इन लोगों ने सारे शहर को घेर लिया तो, उसको उर्दू कहते हैं। किंतु लखनऊ के अतिरिक्त और किसी शहर में उसका बस जाना इस जन की दृष्टि में सिद्ध नहीं होता। कहने को तो मुर्शिदाबाद और अजीमाबाद ( पटना ) में जाने वाले भी अपने आपको 'उर्दू दां' और अपने शहर को 'उर्दू' कहते हैं । 'उर्दू का यह अर्थ कितना सटीक और साधु है इसका पता इसी से चल जाता है कि अभी कुछ दिनों पहले एक स्वर से सभी उर्दू के लोग 'उर्दू' यानी 'उर्दू-ए-मुअल्ला' यानी 'लाल किला' की जबान को शाहजहाँ की चीज़ समझते थे। इसका एकमात्र कारण यही था कि उसी ने 'लालकिला' बनवाया और नवाब सदरयार जंगबहादुर के विचार में तो ताशकंद और 'खूकन्द में अब उर्दू किला के माने में मुस्तामल है इसी- लिये दिल्ली का किला उर्दू-ए-मुअल्ला कहलाया होगा । ( मोका- लाते उर्दू, मुसलिम युनिवर्सिटी प्रेस, अलीगढ़, सन् १९३४ ई०, अस्तु, उर्दू के विषय में यह तो स्पष्ट हो गया कि उसका वास्तव में मध्य देश से कोई संबंध नहीं और न वह संस्कृत तथा हिंदी की भाँति मध्य देश की भाषा ही है । भूलो मत । नोट करो