पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१६३

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उर्दू का अभिमान कि कुछ ठगों ने मिलकर कहीं आपको भी तो नहीं ठग लिया आप जैसे न जाने कितने मनीषी प्राणी को अपना पालतू 'सुअना' बना लिया। आप कहते हो- १-उर्दू, संस्कृत और हिंदी की तरह मध्यदेशी भाषा है । २-उसका साहित्य हिदी के साहित्य से बहुत पुराना है, ब्रज और अवधि के साहित्य ने भी पुराना है। ३-उर्दू हिंदू मुसलमानों के मेल-जोल से बनी है। उसके साहित्य के निर्माण में हिंदुओं का बड़ा हिस्सा है । ४-पंद्रहवीं सदी से अठरहवीं सदी के प्रार्खार तक उर्दू ही हिंदू मुसलमान शिष्टों की भाषा थी। ५-अाज भी उसका हक है कि वह राष्ट्रभाषा बानी हिंदु- स्तान के सभी निवासियों की दिला संपदावी तफ्रांक के पास भाषा मानी जाए। यही न जानते, मानते और चाहते हो ? परंतु सच कहना, यह सीख आपको मिली कहाँ ? किसी मकतब वा पाठशाला में ? स्कूल का नाम लेना तो शायद ठीक नहीं । पर देखो उर्दू के विषय में टाँक लो कि उर्दू संस्कृत और हिंदी की भाँति मध्यदेश की भाषा नहीं, उर्दू की भाषा; हाँ, उर्दू की भाषा, हाँ, उर्दू की भाषा है ! उर्दू का अर्थ ? लो, पहले 'उर्दू' का प्रयोग देखो फिर उसका अर्थ । मीर अम्मन देहलवी की 'चागोबहार' को ही उठाकर क्यों नहीं देख लेते ? उसके दीवाचा में ही कई जगह मिल जायगा 'उर्दू की जवान' का प्रयोग ! देखो, मीर अम्मन किस शान से लिखता है-- हकीक़त उर्दू की ज़बान की बुजुर्गों के मुँह से यूं सुनी है।