पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१५६

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राष्ट्रभाषा पर विचार कम न होंगे। ऊपर से 'हिंदुस्तानी' की उर्दू अलग है । कहने का तात्पर्य यह है कि बिहारप्रांतीय हिंदी-साहित्य संमेलन' और दिल्ली की 'जामिया मिल्लिया' का यह रूप दर्शनीय है। अतएव हम बिहार के प्रभुओं और कांग्रेसी साहित्यिकों से साग्रह अनुरोध करते हैं कि वे कृपया अपने अभीष्ट को स्पष्ट करें और बिहार के प्रांतीय हिंदी-साहित्य सम्मेलन को सदा के लिये अपना प्रिय खोजा बना लें जिसमें भविष्य में बी उर्दू को कोई आशंका न रहे और तपस्विनी हिंदी भी अपनी धूनी कहीं अलग रमाए। उसे मर मिदने में जो शान्ति मिलेगी वह इस विरोग' में नहीं। 2