पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१५५

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केर धेर को संग में दो एक हैं। तो क्या 'हिंदुस्तानी कमेटी' विहार के उर्दू छात्रों को यही पाठ पढ़ाना चाहती है कि 'मुसलमानो' का बहिष्कार ही हिंदी है। उत्तर हाँ के अतिरिक्त और कुछ हो ही नहीं सकता। कारण स्पष्ट है । 'परिचय' के रूप में जो निर्देश किया गया है उसमें बड़ी चातुरी से झलका दिया गया है कि अपनी इसी विशेषता के कारण सैयद इंशा हिंदी गद्य के 'मूजिद' (ईजाद आविष्कार करने वाले ) वने। जो हो, इस पाठ के द्वारा जिन हिंदी शब्दों का बोध कराया गया है वे हैं १ लड़कपन, २ नारियाँ, ३ होता चला आया है, ४ लिखोटी, ५ दुख पड़ा, ६ सोचुकदे (सकुचते ), ७ मुखबात, ८ सफल (?), ६ लिखावट, १० आनन्द, ५१ सहाय, १२ अतीत, १३ भगोले, १४ सहती ( सहित ) १५ वघम्बर, १६ गाइ (गाढ़), १७ विरोग, १८ आहेस, १६ जद, २० इंद्रासन, २१ तैसा, २२ अनक (?3, २३ ईसरी, २४ उनके (को), २५ निरे, २६ उक्ति, २७ डालगों (?) रहस यह तडावे (?) इस प्रकार हम देखते हैं कि उर्दू छात्रों को जो हिंदी शब्द सिखाये गये हैं वास्तव में वे प्रति दिन के बोलचाल के ठेठ शब्द हैं। यह बात दूसरी है कि अरवी लिपि के दोष के कारण उनके पहचानने में कठिनाई होती है और जामिया मिल्लिया' तथा 'हिंदुस्तानी कमेटी के लोग उन्हें नहीं समझ पाते अन्यथा यह बिहार के मुसलमानों की जीभ पर बसे हुए, प्रति दिन के बरेलू शब्द हैं। उर्दू की उदारता, ईमानदारी और सचाई तो यह है कि उधर हिंदी के 'उर्दू भाग' में घोर उर्दू के ६ पाठ दिये गये हैं और एक से एक बढ़कर फारसी अरबी के बीहड़ शब्द सिखाये गये हैं- 'निस्फुन निहार' 'सब्जए खाविदा', 'सबजाजार' और न जाने कितने बीहड़ शब्दों का कोश दिया गया है जो संख्या में २०० से