पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१५४

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राष्ट्रभाषा पर विचार 'हिंदी अदब की तारीख' अवश्य है। निदान निष्कर्ष यह निकला कि उर्दू का बच्चा हिंदी को पढ़ नहीं सकता और हिंदी के बालक को उर्दू पढ़नी ही होगी। 'निसाबे जदीद' के 'हिंदी खंड' का प्रथम पाठ तो निश्चय ही उर्दू ठहरा, अब दूसरे पाठ 'रानी केतकी को कहानी' को लीजिये। उसके विषय में निवेदन है कि वह 'अरबी, फारसी', 'भाषा और संस्कृत' आदि से मुक्त उर्दू है। उसमें फारसी अरबी के शब्द नहीं हैं किंतु जो हिंदी शब्द उसमें लिये गये हैं वे टकसाली उर्दू के ही शब्द हैं कुछ शुद्ध हिंदी के कदापि नहीं देखिये- किसी देस में किसी राजः के घर एक बेटा था। उसे उसके माँ बाप और घर के लोग कुँवर उदैभान करके पुकारते थे। सचमुच उसके जोबन की जोत में सूरज की एक सोत श्रा मिली थी। (पृ० १५१) 'सैयद इंशा की हिंदवी छुट' नामक लेख में दिखाया गया कि रानी केतकी की कहानी' में एक भी ऐसा शब्द नहीं है जिसे 'उर्दू के 'अच्छे से अच्छे' और 'भले से भले' लोग आपस में बोलते न हों। यही नहीं स्वर्गीय सर जार्ज ग्रियर्सन ने भी उसे इसी विशेषता के कारण प्रमाण में रखा है और स्पष्ट कहा है कि वह उर्दू ही है। फिर भी जो लोग 'रानी केतकी की कहानी को हिंदी मानने का हठ करते हों, उन्हें इसी 'निसाबे जदीद' की एक दूसरी कहानी 'एक कठिन रात' को भी पढ़ देखना चाहिए और यह खूब समझ लेना चाहिए कि यह उसके सम्पादक अथवा

  • देखिए 'उर्दू का रहस्य' ना० प्र० सभा, काशी से प्रकाशित ।

'जामिआ मिल्लिया की दृष्टि में भी उर्दू की कहानी है। 'रानी केतकी' और 'एक कठिन रात' में अंतर केवल इतना है कि 'रानी केतकी में कोई 'मुसलमानी' शब्द नहीं और 'एक कठिन रात'