पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१५३

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केर बेर को संग गांधोजी के बाद जिन लोगों का नाम सबसे ज्यादह जगत जाहिर है उनमें पं० जवाहरलाल नेहरू का नाम भला किस बच्चे ने नहीं सुना होगा। (निसावे जदीद', पृ०६७) 'साहित्य-संग्रह' और निसावे जदीद' के पाठभेद पर विचार करना व्यर्थ है । साहित्य-संग्रह में कहा भी गया है कि हिंदुस्तानी के नमूने स्वरूप जिन लोगों का यहाँ संग्रह हुआ है उनमें कहीं कहीं दो-एक शब्द बदल लेने की जरूरत पड़ी है। निदान जब तक इस 'बदल' का भेद नहीं खुलता तब तक हम यही कहना चाहते हैं कि एकता का ढोंग यहाँ भी न चल सका और अंत में उक्त सम्मेलन का मुंह खुल ही गया। हिंदुस्तानी के पुजारियों को मैदान में आकर इस गुत्थी को सुलझाना चाहिये; अन्यथा उन्हीं का 'साहित्य संग्रह' उनकी पोल खोल रहा है और चुनौती देकर कह रहा है कि सब सही, किंतु क्या तुम सच्चे भी हो ? बस, 'लिखित' की पाक-भावना का दर्शन करना हो तो कृपा कर हिंदी के कर्णधारों के पवित्र नामों का पाठ कीजिए ! लीजिए वे आपके सामने प्रस्तुत हैं--- गौरी सिंध, हीराचन्द, अोझागर, धरसिंघ ठाकुर, şys chinese diplyson Flamint akimiyesen गीतभटन, दोबदी, महाबीरपरशाद दोबरी, हेमराज दास visans Sigd Sootindia widelya (पृ० १४६ ) आदि । कहाँ तक कहें आप स्वयं अपने साहित्य के इतिहास को आँख खोल कर पढ़ जायँ और उर्दू के मूढ एवं व्यवस्थित भीतरी चक्र को भली भांति परख लें। ध्यान देने की बात यहाँ यह भी है कि उर्दू के इस 'इंतखाबात हिंदी अद्भ' में चह अंश भी उर्दू ही है, इसकी भाषा तो वही उर्दू है, पर विषय