पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१५२

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राष्ट्रभाषा पर विचार लोगों को चिढ़ाने के लिये गर्दी गई है। नहीं तो उर्दू को तो हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा समझता है । बिहार-प्रांतीय हिंदी साहित्य-सम्मेलन के 'हिंदीखंड' के विषय में कुछ और निवेदन करने की आवश्यकता नहीं, उसे आप स्वयं भी देख सकते हैं और सहज में ही समझ सकते हैं कि उसमें आपकी प्रिय संतान के लिये कौन-सी अनुपम अमिय चूंट है। रही हिंदुस्तानी की बात, सो आपको उसकी चिंता क्यों है। उसके रथ पर तो बड़े-बड़े 'बाबू' और 'महात्मा' हैं फिर उसे किसी की क्या पड़ी है कि आप की सुध ले ! हाँ, उर्दू का रंग अवश्य देखिये यही तो लोचन-लाभ है ? बिहार की हिंदी की आठवीं कक्षा के लिए साहित्य-संग्रह प्रथम भाग है तो उसकी उर्दू की 'आठवीं जमाअत' के लिये 'निसाबे जदीद, हिस्सः अव्वल' दोनों में हिंदुस्तानी' हैं, किंतु तनिक पाठभेद के साथ । परीक्षा के हेतु पं० जवाहरलाल नेहरू को पढ़ देखिए । संभव है आप इस 'साहित्य-संग्रह' के हिंदुस्तानी क्रम को देखकर चकित रह जायें और समझ न सके कि किस न्याय से '६' के बाद '१' फिर ३' और फिर '२पाठ्य क्रम रखा गया है और ४ एवं ५ को यों ही त्याग दिया गया है। परंतु इससे क्या ? आपको तो 'साहित्य-संग्रह' और 'निसाबे जदीद' का हिंदुस्तानी एकता का लेखा लेना है। अच्छा, तो हिंदी की हिंदुस्तानी में लिखा गया है। गांधी जी के बाद जिसका नाम सबसे ज्यादा जगजाहिर है उस पं. जवाहरवाल नेहरू का भास भला किस बच्चे ने नहीं सुना होगा? ( सा० सं०, पृ० १२१) एवं उर्दू की हिंदुस्तानी में कहा गया है-