पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१५१

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केर बेर को संग प्रधान मंत्री ने ही की होगी! इसी प्रकार 'ताम्रलिपियों का पता भी पहले-पहल यहीं लगा है। आप कहते हैं इंसा की बारहवीं शताब्दी की कुछ ताम्नलिपियों से जान पड़ता है कि बंबई का दक्षिणी हिस्सा और उत्तर मैसूर नंद राजाओं के अधिकार में था। (वही पृ०५७) हमने कभी राष्ट्र के लिये जेलयात्रा' नहीं की अतएव कह नहीं सकते कि भाशिकों', 'सुगाई महल' तथा ताम्रलिपियों के अपूर्व अनुसंधान से राष्ट्र का उद्धार होगा अथवा नहीं, परंतु, 'प्राचीन पटना' का अभिमानी होने के कारण ललकारकर कह सकते हैं कि इस प्रकार की भोंडी शिक्षा देनेवाले मांगों को कहीं डूब मरना चाहिए। बस, हो चुका अब अपने पूर्वजों का नाम मत लो और चाहो तो शौक से इस प्रकार की 'शुद्ध' (?) हिंदी को अपनी मातृभाषा वना लो 'अ' ने अदालत को अदब ले आदाब कर इस प्रकार अर्ज किया:--मि० लाई ! अाज जिस अपील को लेकर मैं इस अधिवेशन में खड़ा हुआ हूँ, वह अत्यंत अभिनव है। जहाँ तक मुझे मालूम है, इस अमल का कोई मामला पहले नहीं उठा था और न उस पर कोई फैसला ही है कि नजीर में पेश किया जा सके। तो भी जहाँ तक हो सकेगा मैं बहुत साफ तौर से हुजूर को समझाऊँगा कि हमारा केस क्या है और हमारा दावा किन बातों पर निर्भर है। हुजूर ध्यान से सुनें (वही, हिंदी खंड, पृ०६३) 'हिंदी-साहित्य' की इस शुद्ध हिंदी में 'अधिवेशन' 'अत्यंत' 'अभिनव, निर्भर' और 'ध्यान' कहाँ से आ गये, यही आश्चर्य है। इसी रंग को देखकर तो यार लोग कहा करते हैं कि 'हिंदी' हम