पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१५०

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११–केर वेर को संग 'बादशाह दशरथ' की बात अभी पुरानी भी न होने पाई थी कि बिहार के प्रांतीय हिंदी साहित्य-संमेलन ने जोम में आकर उसकी धूम मचा दी और दलबल के साथ 'हिंदुस्तानी' के घेरे से निकालकर उसे हिंदी की छाती पर बिठा दिया। अब कौन कह सकता है कि 'बादशाह', 'शहर', कुल 'महल', मकान', 'किला'; 'वगैरह' आदि के लिये भी हिंदी में कुछ अपने शब्द हैं। अब तो हमें भी विवश हो मानना ही पड़ेगा कि पाटलिपुत्र के विश्वविख्यात सम्नाट वास्तव में 'बादशाह' थे और 'महल', 'मकान' एवं 'किले में रहा करते थे और वहाँ कभी कोई 'सुगाई नामक महल' भी था, क्योंकि बिहार हिंदी-साहित्य संमेलन के 'हिंदी' खंड में 'पाटलिपुत्र' के 'अतीत' के विषय में प्रश्न हुए (३) पाटलिपुत्र पर किन वंशों के बादशाहों ने राज किया ? (४) किन कारणों से इतने बड़े शहर के कुल महल, मकान और किले वगैरह नष्ट हो गये ? ( साहित्य संग्रह प्रथम भाग, पृ० ६१) और अभिमान के साथ लिखा गया है- शकों के शासन से भार्शिकों ने मगध का उद्धार किया । कौमुदी महोत्सव नाटक से जान पड़ता है कि चंद्रगुप्त के अभ्युदय के कुछ ही पहले राजा सुंदर वर्मा मगध पर राज करते थे और पाटलिपुत्र के सुगाई नामक महल में रहते थे ( वही पृ०६०) भारशिवों' और 'सुगांगप्रासाद' का पता तो हमें भी था; किंतु भाशिकों' और 'सुगाई महल' की खोज प्रांतीय संमेलन के