पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१४७

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बेसिक हिसाब की पहली पुस्तक गज में कितने फुटे हुए' फिर यह 'फीट' का प्रयोग कैसा ? यह तो हिंदी नहीं हिंदी भाषा का उपहास है ! भोले भाले वालकों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा ? यही न कि हिंदी का अपना कोई मार्ग नहीं ? और यहाँ इसी प्रकार का गड़बड़-माला चलता रहता है ? एक अन्य वाक्य लीजिए । पृष्ट ४४ पर कहा गया है कि ५ तोले तराजू के एक तरफ और १ छटाँक दूसरी तरफ रक्खो। पता नहीं कि डाक्टर खाँ महोदय को 'और' से इतनी चिढ़ क्यों है कि हिंदी पुस्तक में भी उसको स्थान नहीं देते और छोटे-छोटे हिंदी बच्चों के सामने उस 'तरफ' को ला देते हैं जो एक ही वाक्य में 'स्त्री' और 'पुरुष' दोनों बन जाता है। क्या डाक्टर खाँ यहाँ भी यह पढ़ाना चाहते हैं कि हिंदी में लिंग का कोई नियम नहीं है, जो चाहे जिस रूप में एक ही शब्द का एक ही वाक्य में प्रयोग करे ? अथवा यह उनके कर्मचारियों की असावधानी का परिणाम है ? अथवा वह यह चाहते हैं कि मालिक से सीख लेकर बालकों को यह बताया जाय कि ताले की ओर स्त्री और छटाँक की ओर पुरुष होने के कारण एक ही 'सरफ़' ने यह भिन्न- भिन्न लीला की है ? रध के लिंग का रहस्य 'ग़ालिब' ने कुछ इसी ढव से खोला था न। यह नहीं, यदि वाक्य की गड़बड़ी देखना चाहें तो इस वाक्य योजना को लें-"३ पाव रई साफ करने के लिए एक दर्जे में दी गई और हर लड़के ने २ तोला पाई।" (पृ०४५) क्या यही है युक्त प्रांत की वह हिंदी जो उर्दू और हिंदुस्तानी से सर्वथा भिन्न शिष्ट हिंदी कही जाती है। एक और भोटा सा सीधा वाक्य लें और इस बेसिक शिक्षा की भाषा-नीति के मूल में पैठे। देखें, प्रश्न है-~-६-"दो जगहों