पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१४५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०-बेसिक हिसाव की पहली पुस्तक वर्धा की शिक्षा परिपाटी ने धीरे धीरे युक्तप्रांत में भीअपना पाँव पसार दिया और प्रांत के शिक्षा विभाग की ओर से कुछ बेसिक पोथियाँ भी निकल आई। इन पोथियों की भाषा नीति क्या रही है, इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं। यहाँ बिहार की भांति हिंदी और उर्दू को एक करने का प्रयत्न नहीं रहा है। यहाँ हिंदी हिंदी और उर्दू उर्दू रखी गई है। परंतु यह तो कहने की बात रही है। वस्तुस्थिति तो यह है कि इन पुस्तकों की भाषा नीति कुछ और ही है । इनकी उर्दू तो उर्दू है पर इनकी हिंदी हिंदी नहीं और चाहे जो हो। चाहें तो हिंदुस्तानी कह ही सकते हैं, क्योंकि भाषा को भ्रष्ट करना ही हिंदुस्तानी का ध्येय है। 'बेसिक हिसाव की पहली पुस्तक' की 'प्रस्तावना' में ही उसके रचयिता डा० इबादुर्रहमान खाँ का महावाक्य है- हमारे डायरेक्टर श्राफ़ पब्लिक इन्सट्रक्शन मि० जे० सी० पावल प्राइस इन पुस्तकों के निकालने के विषय में बहुत उत्सुक रहे हैं। और यह पुस्तक उनके प्रोत्साहन तथा सलाह का ही फलस्वरूप है। इस पुस्तक का कापीराइट प्रांतीय सरकार का है। यही बात 'बेसिक हिसाब की पहली किताब' के 'पेशलफ्ज' में इस प्रकार लिखी गई है- हमारे डायरेक्टर सरिश्तये तालीम जनाब जे० सी० पावल प्राइस साह्न इसके बड़े ख्वाहाँ थे और यह किताव उन्हीं की हौसला अफ़-