पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१४४

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राष्ट्रभाषा पर विचार 'विहार के कुछ साहित्यसेवी' न जाने किस आधार पर खड़े होकर हमें ललकार रहे हैं पर अपने ढङ्ग पर कह वही रहे हैं जो हम कहते आ रहे हैं अथवा अभी जो कुछ और कहना चाहते हैं। बस बिहार को इस प्रश्न पर डट कर विचार करना चाहिए और 'राजेंद्र रीडर' के 'दो भाई' का अध्ययन आँख खोल कर करना चाहिये। यदि उन्होंने उक्त 'दो भाई की कहानी को जान लिया तो होनहार' के चित्र को भी समझ लिया। रही तुर्की टोपी की बात । सो उसके लिए 'कचहरी की भाषा और लिपि' अथवा जून १६३६ की 'वीणा' में प्रकाशित 'हिंदू मुसलिम समस्या' शीर्षक लेख पढ़ने की कृपा करें, उससे उनकी आँख खुलेगी।