पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१४३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिहार और हिंदुस्तानी १३३ वाबू ने स्पष्ट कर दिया था कि मुझे बिहार की सयानी रीडरों का कुछ पता नहीं है और प्रो० अमरनाथ झाने भी 'लीडर' 'सरस्वती' आदि में यह स्पष्ट घोषित कर दिया है कि उनका उक्त कमेटी से कोई भी संबंध नहीं है। फिर भी हमारे सयाने बिहार के कुछ साहित्यसेवी लिख मारते हैं कि उसमें 'डा० अमरनाथ झा जैसे लोग भी हैं। बात बिल्कुल ठीक है। यदि उन्हें स्थिति का ठीक ठीक पता होता तो यह हिंदुस्तानी हुरदंगा ही क्यों मचाया जाता ? बिहार के कुछ साहित्य-सेवियों का दावा या स्वाभिमान तो आपको मालूम होना चाहिये कि जगजननी जान की तथा गौतम बुद्ध की पुण्यभूमि में रहनेवाले हिंदुओं में अब भी वेशभूषा, भाषाभाव, तथा श्राचार-व्यवहार में उतना परिवर्तन नहीं हुअा है, जितना औरंगजेब और वाजिदअली शाह की राजधानियों में बसने- वालों का । (पृ०३७) किंतु करनी यह है कि बिहार को युक्तप्रांत का 'नकलची' वनाया जा रहा है और यदि उनसे कहा जाता है कि भैया! आपकी भाषा हिंदी है और फलतः आपके यहाँ के निरक्षर सयाने हिंदी में शीघ्र साक्षर हो जायेंगे तो हमको मैदान में उतर आने की चुनौती दी जाती है। क्या हम 'बिहार के कुछ साहित्यसेवी' की 'विहार और हिंदुस्तानी' को समूचे बिहार की करनी समझ लें ? नहीं, कदापि नहीं। वह तो किसी शरण जी की 'भानमती की पिटारी है।' उसके सयाने लेखकों को इतना भी पता नहीं कि शब्द का अर्थ वाक्य में खुलता है, कुछ कोश में नहीं। फिर भी हमारे सयाने