पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१४१

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बिहार और हिंदुस्तानी प्रभाव क्या पड़ेगा, इसकी कल्पना कुछ तो इसी वाक्य से हो जाती है-"कुरान अल्लाताला की भेजी हुई किताब है और उसमें रोजा नेमाज के अलावा दुनिया की हर बातों के बारे में लिखा हुआ है । और कुछ इस वाक्य से कि 'आपने बताया है इसलाम मजहब में सजपाट और मजहब एक ही चीज है ।' उधर 'कुरान' में सभी वाते हैं, इधर राजपाट और मजहब में भेद नहीं। फिर क्या? 'एक वात और। यही अनीसुर्रहमान साहब जगद्गुरु और भंगी के भी लेखक हैं। 'होनहार' के संपादक भी यही हजरत हैं! आप इसलाम के प्रसंग में तो 'अमीरुलमोमेनीन' और 'खलीफतुल मुस्लेमीन लिख जाते हैं पर शंकराचार्य मुँह से 'घृणा के योग्य नहीं कहा सकते, नहीं, उनकी भाषा तो और भी अरबी बना देते हैं। देखिए तो सही, कितनी सटीक भाषा है। जगद्गुरुजी कितनी साफ उर्दू में फरमाते हैं- हाँ, वेशक ! हिंदू धर्मके हिसाब से तू यकीनी काबिले नफरत है । अब 'मजीद मल्लिक' की लिखी 'रंग में भंग' का रंग देखिए। 'जगजननी जानकी की पुण्यभूमि' में क्या और किस ढंग से हो रहा है। कहाँ की संस्कृति उसमें बोल रही है ? 'वाग्दत्ता' किस धर्म का प्रतिपादन कर रही है ? बिहार के पंडितों की घर की यह दशा ? इसमें समस्त हिंदू जाति का अपमान है- रामकिशोर ( दुलहा )-मैं यह अर्ज करना चाहता हूँ कि मुझे-- मुझे शादी मंजूर है- पंडित करताकिशुन ( दुलहिन के बार -मुझे मालूम था यही होगा। सिर्फ मुझे जलील करने के लिये यह किया गया ।