पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१३८

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राष्ट्रभाषा पर विचार उन्हों को कामिल उस्ताद मानकर उनकी जबान की पैरवी करने लगे। नतीजा यह हुआ कि लखनऊ लखनऊ न रह कर 'इस्फहान' हो गया और उर्दू खासी फारसी बन गयी। फिर अजीमाबाद से भागते नहीं तो करते क्या ? पटना तो 'इकहान' होने से रहा । अस्तु, 'बिहार के कुछ साहित्यसेवी' कुछ भी कहते रहें किंतु 'पटना तो इस्फहान होने से रहा' का अभिमानी हृदय यह तो सह नहीं सकता कि “जगजननी जानकी तथा गौतम बुद्ध की पुण्य भूमि" में रहनेवाले जीवों की स्वतन्त्र सत्ता 'औरंगजेब और वाजिदअली शाह की राजधानियों में बसनेवाले' 'ईरानी तूरानी नजादों' अथवा 'नजीवों' और 'मदुओं की बोली-ठठोली की नकल में नष्ट हो जाय और बिहार की जबान की लगाम किसी हिंदी-द्रोही के साथ में सौंप दी जाय जो बिहारी नहीं चाहे हापुड़ी भले ही हो। 'जगजननी जानकी तथा गौतम बुद्ध की पुण्य भूमि में रहने- बाले हिंदुओं की धर्मनिष्ठा भी देख लीजिये । डाक्टर आजम करेवी (कुरीवी १) कहते हैं- उसके एक घंटे के बाद जब सत्यनारायण की कथा में गाँव वालों को बड़ा मजा अा रहा था, सुंदरिया चीखती चिल्लाती श्रायी। इसकी आँखों में ऑसू थे। चेहरा गुस्ले के मारे तमतमा रहा था। उसने चिल्लाकर पंडित जी महाराज; दोहाई है, गाँवंशलों की दोहाई है, लालाजी ने ( यजमान ) मेरी इजत ली है।' लाला जी एक तरफ से लपके हुए श्राये । उनकी आँखें लाल हो रही थी, और पाँव डगमगा रहे थे। उन्होंने जोधा को हुकम दिया---'यह पागल है। इस बदमाश औरत को बाहर निकाल दो। (बगुलाभगत पृ० ११)।