पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१३५

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8-बिहार और हिंदुस्तानी बिहार के कुछ 'साहित्य सेवियों की ओर से बिहार और हिंदुस्तानी' नाम की एक छोटी सी पुस्तिका, विद्यापति हिंदी समा, दरभंगा से निकली है। उसके स्वाभिमानी लेखक का कहना है कि- श्री चंद्रबली पांडेयजी की पुस्तक ('बिहार में हिंदुस्तानी') में जगह जगह पर यह ध्वनि टपकती है कि बिहारियोंको शुद्ध भाषा लिखना और बोलना नहीं पा सकता । एक जगह तो उन्होंने यहाँ तक लिख मारा है 'भाषाके क्षेत्रमें बिहारी सनन फिस दृष्टि से देखे जाते हैं, इसके कहनेकी कदाचित् कोई आवश्यकता नहीं।' यदि इतने अपमान पर भी बिहारी सज्जन मुँह नहीं खोलते तो इसके दो ही मानी निकलते, था तो वे नितांत अयोग्य हैं अथवा स्वाभिमानशून्य । परंतु श्री चंद्रबली पाण्डेयजी को जानना चाहिए कि बिहार में भी योग्यता और स्वाभिमान रखनेवाले लोग हैं और समय पड़ने पर प्राक्रमण का भरपूर जवाव दे सकते हैं ! उनके अनौचित्यपूर्ण कथनका प्रतिवाद करने के लिये ही जबान में यह पुस्तक लिखी गयी है। यदि वे 'बाद प्रतिवाद का सिलसिला अागे बढ़ाना चाहें तो हम सहर्ष उसके लिये तैयार हैं (दो शब्द, २-३ ) समझ में नहीं आता कि हम किस विषय को लेकर परस्पर भिड़ें। हमारे 'वाद-प्रतिवाद का सिलसिला' क्योंकर आगे बढ़े ? 'भाषा के क्षेत्र में हमारी भी वही स्थिति है जो 'बिहारी' सज्जनों की। हमारी जन्म भाषा पछाहीं' नहीं 'पूर्वी या भोजपुरी' है।