पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१३४

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१२४ राष्ट्रभाषा पर विचार में हमें दिखा यह देना है कि इस पोथी में अंगरेजी की चाशनी भी कुद्ध कम चोखी नहीं है। प्रमाण के लिये उसका एक महावाक्य लीजिए। हर एक उम्मीदवार अपने हलके के राय देनेवाले से मिलता है और उनसे कहता है कि वह डिस्ट्रिक्ट उनकी भलाईका काम करेगा और वह अपनी राय उसे दें। (पृ० ५७-५८) अव यदि आप इसे हिंदुस्तानी समझते हैं तो समझते रहे पर यह हमारे देश की भाषा तो है नहीं। यह तो प्रत्यक्ष ही किसी अंगरेजी वाक्य का उल्था है जो कुछ उर्दू के सहारे हिंदुस्तानी अक्षरों में ढाल दिया गया है। व्याकरण की दृष्टि से जहाँ देने वाले' की जगह देने वालों चाहिए वहीं 'वह' की जगह 'वे'। माना 'लखनऊ' की कृपा से थे' उर्दू से उठ गया पर अभी वह हिंद क्या स्वयं देहली में भी तो चलता फिरता दिखाई देता हैं, फिर कोई हिंदुस्तानी उसे क्यों छोड़ दे। रही सीधे और टेड़े अथवा 'डाइरेक्ट' और 'इनडाइरेक्ट' की बात। सो हमारी भाषा सीधी है, टेढ़ी नहीं। इनडाइरेक्ट से उसका क्या काम ? यदि समझ हो तो उसके स्वरूप को पहचानो और अपने भोले- भाले बच्चों को इस भूतनी से बचाओ। नहीं तो हिंदुस्तानी की 'हुमा' तो आपको बादशाह बना देगी पर आपकी संतानों के लिये रहेगी वह हौवा' ही।