पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१३३

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१२३ द्योतक है यह हम नहीं कह सकते, पर इतना जानते अवश्य हैं कि हमारी इस हिंदुस्तानी की पोथी में शेर मात्र को 'दोहा' लिखा गया है और पद्य का प्रयोग स्त्री-लिंग में किया गया है। इसके पद्य हैं भी बड़े डब के । तनिक गुनगुनाइये तो सही! कितना सरस राग है- ऐ भोले भाले बच्चों नादानों नातवानों। सरपर बड़ों का साया साया ईश्वर का बानों ।। (पृ० १६६) साया ईश्वर का जानो गद्य है वा पद्य ? चाहे जो हो, किसी प्रकार इसका अर्थ तो आपकी समझ में आ गया । अब एक दूसरा पद्य लीजिए और अपने ज्ञानकी परीक्षा तो कर लीजिए । कितना सटीक कहना है- फागन का है महीना गर्मी का दौर आया । महका हुआ है जंगल बागों में मौर श्राया ॥ X X बह शाखें करवटें यहाँ लूँ बदल रही है। बस कैरियाँ ही साँचे, साँचे में ढल रही है ।। X यह कैरियाँ नहीं हैं, बच्चे हैं दूध पीते जो दूध के सहारे, इस झूलेमें हैं जीते जड़ने जमीनकी छाती, से भर रखे हैं शीशे पहुँचाते मुँह तलक हैं नलियाँ रवड़ की रेशे । (पृ०६५-६) कहिये आया कुछ समझ में ? यदि हाँ तो बच्चे को समझा देखिए, कितनी सरलता से क्या कुछ समझता है ? जो हो, अंत